यमुनानगर, 29 अक्टूबर —एतिहासिक और पुराणिक तीर्थस्थल कपालमोचन मेले की तैयारियां तेज है. लेकिन इसका इतिहास बड़ा ही रोचक हैं. यहां बड़े देवी देवताओं ने निवास किया है और उनके कष्ट भी दूर हुए हैं.क्या है कपालमोचन तीर्थ स्थल की मान्यता और क्यों लोग यहां खीचें चले आते हैं.उत्तर भारत के सबसे बड़ा तीर्थ स्थल यानि कपालमोचन मेले का आगाज 11 नवंबर से 15 नवंबर तक होगा,जिसकी तैयारियां तेज कर दी गई हैं. इस मेले में करीब 8 से 10 लाख श्रद्धालुओं की आने की उम्मीद है.
भगवान परशुराम, शिव, श्रीराम, श्री कृष्ण, माता कुंति के अलावा गुरु गोबिंद सिंह भी यहां आए
कपालमोचन एक एतिहासिक तीर्थ स्थल है यहां सदियों पहले भगवान परशुराम आएं थे उन्होने क्षत्रियों का वध किया था,वो ब्रह्म ह.त्या दोष से निवारण के लिए यहां पहुंचे थे. इसके अलावा भगवान शिव भी यहां ब्रह्म ह.त्या के दोष से छुटकारा पाने के लिए आए थे. भगवान श्रीरम और भगवान श्रीकृष्ण भी इस पवित्र धरती पर पहुंचे थे वो भी अपने कष्टों के निवारण के लिए आए थे. कपालमोचन में तीन सरोवर हैं जिनका नाम सूर्यकुंड, ऋणमोचन कुंड और गऊ बच्छा कुंड हैं. बताया जाता है कि माता कुंति ने सूर्यकुंड में आकर तपस्या की थी और उन्हे पुत्र के रूप में करण की प्राप्ति हुई थी. लोग सूर्यकुंड में स्नान करने के लिए हरियाणा के अलावा, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, उत्तराखंड और हिमाचल से आते हैं. बहुत से श्रद्दालु यहां पर स्थित बेरी के पेड पर धागा बांधकर पुत्र रत्न की प्राप्ति भी करती हैं. यह मेला हर साल होता है.
रहने और खाने का पूरा बंदोबस्त
गऊ बच्छा स्नान घाट पर आए महिला श्रद्धालुओं ने बताया कि हमारी कपालमोचन तीर्थ में काफी मान्यता है. जब से हम यहां आते हैं हमारे दुख दर्द खत्म हो गए हैं. श्रद्दालुओं के लिए यमुनानगर प्रशासन 3 महीने पहले से ही तैयारियां शुरू कर देता है. बिलासपुर के एसडीएम जसपाल गिल ने बताया कि हर बार की तरह इस बार भी श्रद्दालुओं को कोई परेशानी नहीं आएगी, उनके रहने और खाने का पूरा बंदोबस्त किया जाएगा, सुरक्षा की नजर से 100 से ज्यादा सीसीटीवी और पार्किग की भी व्यवस्था की जाएगी