Home Haryana यमुनानगर वन विभाग में 18 महीना में खैर तस्करी के 250 मामले..

यमुनानगर वन विभाग में 18 महीना में खैर तस्करी के 250 मामले..

43
0
यमुनानगर,18 दिसम्बर– यमुनानगर वन विभाग खैर तस्करी को रोकने में नाकाम साबित हो रहा है.वन विभाग के दिए आंकड़ों के मुताबिक करीब डेढ़ साल में 250 से ज्यादा खैर तस्करी के मामले सामने आए हैं। वन विभाग खानापूर्ति के लिए कार्रवाई तो करता है लेकिन खैर की कटाई पर रोक क्यों नहीं लग पा रहा है सवाल अहम है।  यमुनानगर में लकड़ी तस्करों के निशाने पर लाल चंदन कहे जाने वाला खैर की लकड़ी हमेशा निशाने पर रहती है। क्योंकि खैर की लकड़ी इन तस्करों को बहुत जल्द मालामाल बना देती है। इस लकड़ी की कीमत लाख़ो रुपए में आँकी जाती है।
पेड़ की कटाई पर क्यों नहीं लग पा रही रोक?
बता दें कि रात के अंधेरे में खैर तस्कर जंगलों में घुसकर खैर के बेसकीमती पेड़ काट लेते हैं और फिर उसे प्रशासन की नजर से बचाकर मंडी में मोटे भाव पर बेचते हैं। खैर की तस्करी करना इन लोगों का धंधा बन चुका है। यही वजह है कि यमुनानगर का वन विभाग इन खैर तस्करों पर खास नजर रखता है। यमुनानगर फॉरेस्ट एरिया को चार रेंज में बांटा गया है जिसमें छछरौली, जगाधरी, कलेसर और साढोरा रेंज है। यह जंगल 1756 वर्ग किलोमीटर में फैला है। इन जंगलों में खैर की लकड़ी काफी भारी मात्रा में पाई जाती है। वन विभाग के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 15 जुलाई 2023 से 5 दिसंबर 2024 तक खैर तस्करी के 250 मामले सामने आए हैं। छछरौली में 62 साढोरा में भी 62, जगाधरी में 27 और कलेसर में सबसे ज्यादा 99 केस रजिस्टर्ड किए गए हैं। इन मामलों में 28 पर केस भी दर्ज किए गए हैं जबकि खैर तस्करों से 3 लाख 84 हज़ार 340 रुपए भी वसूले गए हैं इन 250 मामलों में 81 मामले फिलहाल पेंडिंग है लेकिन जब वन विभाग के अधिकारी खैर तस्करों को पकड़ने जाते हैं तो कई बार उन पर भी हमले हो चुके हैं। लेकिन वन विभाग के अधिकारियों की जिम्मेदारी यहीं खत्म नहीं होती बड़ा सवाल यह है कि क्या वन विभाग के अधिकारी जंगल की सुरक्षा के प्रति लापरवाह है या फिर खैर तस्करों के साथ उनकी कोई मिलीभगत है क्योंकि इन चारों रेंज में खैर कटाई के मामले खैर रुक नहीं रहे हैं क्या वजह है सवाल यह बड़ा है?
यमुनानगर वन विभाग के अधिकारी मीडिया के कैमरे को फेस नहीं करना चाहते आंकड़े तो दे देते हैं लेकिन कैमरे पर बोलने से हिचकीचाटे हैं। क्या उन्हें पत्रकारों के तीखे सवालों से डर लगता है या फिर कहीं मिलीभगत की बू तो नहीं है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here